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Freedom At Midnight Experts Review |
Freedom At Midnight Review By Pankaj Shukla(Amar Ujala)
"वेब सीरीज ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ के मुख्य कलाकारों में आरिफ के बाद जिस कलाकार ने बेहतरीन काम किया है, वह हैं पटेल के किरदार में राजेंद्र चावला। नई सराकर बनाने की चर्चा के बाद जब पटेल और नेहरू महल की भूल भुलैया में खोते हैं तो वह दृश्य तनाव के पलों में भी रक्तचाप पर काबू बनाए रखने का बढ़िया उदाहरण है। सरोजिनी नायडू की भूमिका में मलिश्का की कास्टिंग औसत है। उनका काम भी बहुत प्रभावी नहीं लगा। इरा दुबे का काम भी जिन्ना की बहन के रोल में बेहतर हो सकता था। सीरीज की सिनेमैटोग्राफी मलय प्रकाश ने बहुत ही उम्दा की है। दृश्य और प्रकाश का उनका संयोजन बिल्कुल किसी टेक्स्ट बुक जैसा है।"
Freedom At Midnight Review By Subodh Mishra(Aaj Tak)
"कुल मिलाकर 'फ्रीडम एट मिडनाईट' सोनी लिव का एक और दमदार शो है जो भारतीय इतिहास के सबसे उदास चैप्टर को एक दिलचस्प पॉलिटिकल थ्रिलर की तरह खोलता है. भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास पर बना तो बहुत कुछ है, मगर जिसे हिस्से को ये शो लेकर आया है, वो बहुत कम एक्सप्लोर किया गया है. हालांकि, फैक्चुअली शो कितना करेक्ट है ये इतिहास पढ़ने वालों के मेहनत करने का विषय है."
Freedom At Midnight Review By Upma Singh(NBT)
"वैसे, ऐसे जटिल विषय वाली बहुचर्चित किताब को पर्दे पर ढालना आसान काम नहीं होता है, इसलिए निर्देशक निखिल अडवानी ने अभिनंदन गुप्ता, अद्वितीय करेंग दास, गुंदीप कौर, दिव्य निधि शर्मा, रेवंत साराभाई और ईथन टेलर जैसे छह लेखकों की लंबी चौड़ी टीम इसके लिए जुटाई है। बेशक भारत-पाक बंटवारे पर पहले भी कई फिल्में बनी हैं, लेकिन वो ज्यादातर अंग्रेजों के जुल्म, हिंदू-मुस्लिम संघर्ष के बारे में रही हैं, जबकि, यह सीरीज उसके पीछे की राजनीति को सामने लाती है। इसे देखते हुए इतिहास के पन्ने पलटने का मन कर जाता है। तेज रफ्तार के बढ़ती कहानी में रुचि बनी रहती है।"
Freedom At Midnight Review By Arushi Jain(India Today)
"प्राइम वीडियो की जुबली में खूब सराहे गए सिद्धांत गुप्ता ने एक बार फिर भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की भूमिका में अपनी अभिनय क्षमता साबित की है। लेकिन सबसे बेहतरीन प्रदर्शन आरिफ जकारिया ने मोहम्मद अली जिन्ना के रूप में किया है। मुस्लिम लीग के दृढ़ नेता के रूप में वे पूरी तरह से विश्वसनीय हैं, जिनका एकमात्र सपना पाकिस्तान का निर्माण था। गांधी के रूप में चिराग वोहरा और सरदार वल्लभभाई पटेल के रूप में राजेंद्र चावला ने भी दमदार अभिनय किया है। सहायक कलाकारों ने सीरीज़ को और भी ऊंचा उठाया है, जिससे कहानी में गहराई की एक अतिरिक्त परत जुड़ गई है।"
Freedom At Midnight Review By Sonal Pandya(Times Now)
"आडवाणी के पिछले प्रोडक्शन रॉकेट बॉयज़ की तरह , फ़्रीडम एट मिडनाइट ने भी अपनी कास्टिंग, प्रोडक्शन डिज़ाइन और कॉस्ट्यूम्स के ज़रिए उस दौर को फिर से जीवंत करने की पूरी कोशिश की है। हालाँकि, कहानियों के समय के हिसाब से, दोनों शो अलग-अलग तरह के हैं। रॉकेट बॉयज़ ज़्यादा आशावादी था, जबकि फ़्रीडम एट मिडनाइट कहीं ज़्यादा गंभीर कहानी है। निर्माताओं ने अतीत के प्रति प्रामाणिक होने और कहानी के साथ काफ़ी सम्मानजनक बने रहने का लक्ष्य रखा है। इसके अलावा, यह जानते हुए कि भारत की आज़ादी की कहानी में और भी बहुत कुछ बताया जाना बाकी है, सीरीज़ अचानक खत्म हो जाती है। उम्मीद है कि दूसरे भाग के लिए बहुत लंबा इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा।"
Freedom At Midnight Review By Saibal Chatterjee(NDTV)
"यह न केवल कुशलता से तैयार की गई है और अभिनय के मामले में भी बेहतरीन है, बल्कि यह एक ऐसी कहानी भी कहती है जो ज्ञात और अज्ञात सूचनाओं से भरी हुई है, जिसे कौशल और संवेदनशीलता के साथ पेश किया गया है। इसमें कोई दिखावा नहीं है, और न ही मुख्यधारा के बॉलीवुड की तरह कोई धमकी और शोर-शराबा है।"
Freedom At Midnight Review By Dhaval Roy(Times Of India)
"फ्रीडम एट मिडनाइट भारत के इतिहास और स्वतंत्रता के संघर्ष में रुचि रखने वालों के लिए एक सम्मोहक फिल्म है। यह धीमी गति से जलने वाला एक सिनेमाई अनुभव है जो आपको प्रभावित करेगा।"